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पुण्य तिथि

संक्षिप्त जीवन परिचय
स्वर्गीय पंडित बाल दिवाकर हंस स्वतंत्रता संग्राम सैनानी
I
पंडित बाल दिवाकर हंस जी का जन्म 18 अप्रैल 1918 को हिमाचल प्रदेश में हुआ था । इनके पिता का नाम पंडित अमरनाथ शास्त्री था । जो चम्बा राज्य (हिमाचल प्रदेश) के राजगुरु थे । इनकी माता का नाम श्रीमति रामप्यारी देवी था। इनका विवाह श्रीमती शांति देवी से हुआ था । भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के मोर्चे पर पंडित बल दिवाकर हंस जी की अहम भूमिका रही है । जो की साहसिक गाथा के रूप में अविस्मरणीय है । उल्लेखनीय है की स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सूत्रधार राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, भारतरत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, हरिभाऊ उपाध्याय, गोकुल भाई भट्ट आदि का सानिध्य इन्हे प्राप्त रहा है ।
8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था । यह एक ऐसा आंदोलन था जिसका लक्ष्य ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करना था । पंडित बाल दिवाकर हंस जी ने इस आंदोलन में भी अपनी अहम भूमिका निभाई और अनेको बार अंग्रेजो द्वारा कड़ी प्रताड़ना दी गयी । एक दिन भारत छोड़ो आंदोलन के समय चांदनी चौक दिल्ली पर लगी महारानी विकटोरिया की प्रस्तर मूर्ति के ताज को तोड़ दिया था । मूर्ति तोड़ते वक़्त उन्हें अंग्रेजी ने देख लिया और इनके ऊपर गोली चलाई जो उनके बाये पैर में लग के निकल गयी । लहू लुहान होने के बाद भी वो वहां से भाग गए और अंग्रेजो के हाथ नहीं आये पर इन्होने कभी हिम्मत नहीं हारी ।
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन भारत के स्वतंत्रता सैनानी और राजनेता थे । उन्ही के सानिध्य में रह कर पंडित बाल दिवाकर हंस जी राष्ट्रीय आंदोलन की अग्रणी पंक्ति के नेता थे और हिंदी के अन्नया सेवक कर्मठ, तेजवस्वी वक्ता, बहुभाषविद और समाज सुधारक थे। हिंदी को भारत की राज भाषा के पद पर प्रतिष्ठत करवाने में उनका महत्पूर्ण योगदान था इस कारण वह जेल भी गए। पंडित बाल दिवाकर हंस जी स्वामी दयानन्द सरस्वती जी तथा आर्य समाज के सिधान्तो में पूरी आस्था रखते थे । अपने 1939 में मात्र 20 वर्ष की आयु में ही हैदराबाद के धर्म युद्ध में भाग लेते हुए सत्यग्रह किआ और जेल गए थे ।
पंडित बाल दिवाकर हंस जी आर्यवीर दल के प्रधानसंचालक के रूप में भी कार्यरत थे । 17 शताब्दी में 11 अगस्त 1979 को मोरवी (गुजरात) में सबसे बड़ी आपदा आई जिससे मच्छु बाँध टूटने से कई हजार लोग मार गए । अपने कठिन मेहनत करके बहुत लोगो को बचाया। रात में भी नाव में बैठकर लालटेन की रौशनी लगाकर लोगो को बचाने का कार्य किआ । आप एक सच्चे समाज सुधारक भी थे। पंडित बल दिवाकर हंस जी सामाजिक दृष्टि से ऊंच - नीच में विश्वास नहीं करते थे और महिलाओ को समानता के पक्षधर थे और उनका बहुत सम्मान करते थे ।
पंडित बाल दिवाकर हंस जी के एक साहसी स्वंतंत्र संग्राम सैनानी, क्रन्तिकारी कवि थे । आपका वक्तित्व एक आर्य वीर दल के लिए धरोहर से कम नहीं है । देश की रक्षा के लिए जेल यातनाये सही और देश को स्वाधीन करने में अपनी अहम भूमिका निभाई । पंडित बाल दिवाकर हंस जी स्वर्गवास 29 सितम्बर 1995 को गाज़ियाबाद में हो गया था इनका अंतिम संस्कार पुरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ हिंडन नदी गाज़ियाबाद में हुआ था

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